Bhomiya Chalisa Lyrics / श्री भोमिया चालीसा

श्री भोमिया चालीसा

Bhomiya Chalisa Lyrics / श्री भोमिया चालीसा
 Bhomiya Chalisa Lyrics / श्री भोमिया चालीसा

श्री भोमिया चालीसा

॥ दोहा ॥
शैल शिखर सम्मेत के,
सांवलिया जिनराज।
निशदिन मेरी वंदना,
तारण-तरण जहाज ॥

॥ चोपाई ॥
तीरथ रक्षक देव भोमिया।
साथ निभावे देव भोमिया ॥

इक कर शस्तर इक कर खप्पर।
देव भोमिया सबको सुखकर ॥

पुव्व देश के भैरूं कहाते।
सुमिरत झटपट दौड़े आते ॥

भटके राही पथ पा जाते।
जो भैरूं का ध्यान लगाते ॥

क्षां क्षीं क्षूं क्षौं नमः भोमिया।
सरल सहज है देव भोमिया ॥

लेते कुछ ना, सब कुछ देते।
देख भगत मुस्काते हेते ॥

हेत भरेली नजर सुहानी।
बाबा तेरी अजब कहानी ॥

भक्तों पर किरपा है पूरी।
इच्छा कोई न रहे अधूरी ॥

रिमझिम रिमझिम बरसे सावन।
भक्त गृहों का महके आंगन ॥

संकट मेटे कष्ट निवारे।
बाबा है सच्चे रखवारे ॥

जो मन से नित जाप करेगा।
वैभव-कोष अखंड लहेगा ॥

चमत्कार बाबा का भारी।
ध्यान जाप करते नर-नारी ॥

जो जीवन में शांति चाहो।
तो बाबा को निशदिन ध्याओ ॥

हाथ जोड़ यात्रा जो करते।
उनकी सारी पीड़ा हरते ॥

यात्रा पूरण होती सुख में।
मिट जाता श्रम सारा पल में ॥

पार्श्वनाथ के आज्ञाकारी।
देव भोमिया समकितधारी ॥

परतिख जग में देव भोमिया।
पर-हितकारी देव भोमिया ॥

जन-जन के हैं प्यारे देवा।
सेवा से नित लहते मेवा ॥

डमडम-डमडम डमरू बाजे।
सेवा में सुर सहज बिराजे ॥

कडड-कडड कड चमके दमिनी।
बरसत नभ मंडल से अगनी ॥

भक्त हृदय तिहां थर-थर कंपे।
जपत भोमिया तब मन जंपे ॥

लहर हरख की दौड़ी आवे।
भक्ति पूजना चित्त रमावे ॥

पल में होवे डर छूमंतर।
देव भोमिया है अभयंकर ॥

सेवे सहस हजारों सुरनर।
जाप जपे नित श्रद्धा भर कर ॥

एक विनंती तुझ दरबारे।
सपन करो साकार हमारे ॥

रक्त वर्ण मुख मंडल सोहे।
भक्त जनों के मन को मोहे ॥

किरपा हो जावे जो तेरी।
नैया पार लगादे मेरी ॥

मंत्र जपे श्रद्धा से तेरा।
भूत बनत सेवक अदकेरा ॥

जाप करे जो नर रविवारे।
कारज निपजे पल में सारे ॥

नित उठ शत अठ ध्यान लगावे।
प्रेत पिशाच समीप न आवे ॥

और द्वार अब नांहि भटकना ।
द्वार भोमिया हाजिर रहना ॥

भक्तों का नित आता रेला।
भक्ति भाव का लगता मेला ॥

विद्युत् सम तेजस्वी देवा।
ज्योर्तिधर वरदायी देवा ॥

वासचूर्ण जिनहर्ष उछाले।
बाबा धारे रूप निराले ॥

गादी सुवरण आप बिराजे ।
बाबा नाम जगत में गाजे ॥

दोय सहस तिहुतर शुभ वरसे ।
पौष सुदि पांचम दिन हरसे ॥

"कांति मणिप्रभ" ने लिखा, चालीसा सुखकार।
देव भोमिया ने दिया, दरिसन मंगलवार ॥

पाठ करे श्रद्धा धरी, जो दिन में इक बार ।
देश निकाला दु:ख का, हो जावे तिणवार ॥

वार सूर्य को जो करे, पाठ एक शत आठ।
तस घर जीवन भर रहे, अनुपम सुख का ठाट ॥

करदो किरपा भोमिया, सुन विनती हे देव ।
जीवन में शांति रहे, पावे मंगलमेव ॥

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ