दुख - एक सच्ची गाथा लिरिक्स (घोर सनातनी)

दुख - एक सच्ची गाथा लिरिक्स

(घोर सनातनी)


दुख - एक सच्ची गाथा लिरिक्स (घोर सनातनी)
दुख - एक सच्ची गाथा लिरिक्स (घोर सनातनी)


Lyrics/Rapper/Music/Mix/Master
@GHORSANATANI

दुख - एक सच्ची गाथा लिरिक्स

(घोर सनातनी)


दुःख, पीड़ा कष्ट ऐसे शब्द है जो हर मानव के जीवन में है, 
अरे मानव छोड़ो हमारे प्रभु श्री कृष्ण भी इनसे नही बच पाए।
सारी गाथा सुनाने के लिए मेरा ये जीवन भी कम पड़ जायेगा और आपका भी।
तो इस गीत के माध्यम से में तुम्हे कृष्णा जी के जीवन में आए कुछ कष्टों से अवगत कराता हूं, जिनको सुनके तुम कहोगे अरे हमारे कष्ट तो इनके आगे कुछ भी नही है , कुछ भी नही है...

अगर कष्ट तुम्हे बतलाने बैठा
सुनते सुनते रो दोगे
और सच्चे हिन्दू हो तो
सुनलो अपना आपा खो दोगे
मैं एक एक इतिहास का पन्ना
खोज के सामने रख दूंगा
पहले तुम मेरी बाते सुनो
फिर तुम्हे भी कहने का हक दूंगा
अरे कृष्णा जी के दुख
तो उनके जन्म से पहले शुरू हुए
वो पृथ्वी पर कष्टों से घिर के
गीता ज्ञान के गुरु हुए
तुम तुच्छ मानव हो कष्ट
तुम्हारे उनके आगे फीके है
भाई गौर से सुनना
एक एक मैंने शब्द सोच के लिखे है ।

मां देवकी और श्री वासुदेव को
काल कोठरी में डाल दिया
तुम सोच सको न कंश ने
जेल में कैसा उनका हाल किया
अरे जन्म से पहले कंश ने
उनके 6 भाई मार दिए
उनकी माता को कैद रखा
और पिता के अस्त्र उतार दिए
अरे जन्म भी जिसका जेल में हो
वो कितने भाग्यशाली है
उस नन्हे से बालक के उपर
विपदा आने वाली है
कृष्णा के रक्त के प्यासे
उनके मामा कंश उडीक में है
उस मुर्ख को अब कोन बताए
अंत तेरा नजदीक में है ।

जब कान्हा जी का जन्म हुआ
तो वक्त ही सारा थम गया
वहा एक एक जो सैनिक था
वो बर्फ की भांति जम गया
वासुदेव के बंधन टूट गए
वो सज्ज थे गोकुल जाने को
उनकी माता के पास समय
न एक भी आंसू बहाने को
माता कान्हा को पास में रखती
कंश के हाथो मर जाते
पर गोकुल छोड़ के आने के
लिए पिता के हाथ भी डर जाते
पर उनको मन समझाना पडा
कृष्णा को छोड़ के आना पडा
अभी जी भरके मां देख न पाई
पुत्र को दूर ले जाना पड़ा ।

कान्हा को मरवाने के लिए
माया जाल बिछाया था
कभी पूतना थी आई
कभी बकासुर आया था
किंतु नन्हे से कृष्णा को
मार नही कोई पाया था
नाग कालिया को यमुना से
कृष्णा ने भगाया था
गोवर्धन पर्वत पूजा की तो
इंद्र रूठ गए
उसने आके अहंकार में
रौद्र रूप दिखाया था
मूसलाधार वर्षा करके
सब पे कहर भी ढाया था
इंद्र के प्रकोप से फिर
कान्हा ने बचाया था
गोवर्धन पर्वत को अपनी
उंगली पे उठाया था ।

जिस मां ने जन्म दिया
उससे बालपन में दूर हुए
जिसने पाला पोसा उसको
छोड़ने पर मजबूर हुए
प्रेम राधा को किया तो
व्याह न हो पाया
प्रभु के मन मे था जो
भी कोई समझ न पाया
14 साल कैद में थे
माता पिता को छुड़ाया
और रोते रोते उनको
अपने गले से लगाया

सुदामा मिलने उनको आया
द्वारपालो ने भगाया
उसने खुद को श्री कृष्णा
जी का मित्र बताया
सब हंसने लगे उनपे
और मजाक भी उड़ाया
कान्हा दौड़ आए
उनको अपने गले से लगाया
और परम मित्र होने का
प्रमाण भी दिखाया
उसके चरणों को खुद
धोया उसके पैर को दबाया
अपने हाथो से सुदामा जी
को भोजन भी कराया
उनकी टूटी फूटी झोपड़ी
को महल बनाया
उनकी टूटी फूटी झोपड़ी
को महल बनाया
हाथो से सुदामा जी
को भोजन भी कराया

16000 कन्या कैद में थी
उनको था छुड़ाया
नरकासुर को भी मारा
सबको उनके घर पहुंचाया
इतने साल किसके साथ में थी
सबने प्रश्न उठाया
और किसी भी कन्या
को न था किसी ने अपनाया
तब दुखी होके लौटी कन्या
कृष्णा जी के पास
बोली प्रभु हमको जिंदा
रखलो तुम हो अंतिम आस
सबके मान को बचाने खातिर
उनसे वियाह रचाया
और द्वारका में लाए
अधिकार भी दिलाया

द्रोपदी की लाज रखी
उसके मान को बचाया
भरी सभा में हो रहे
वस्त्रहरण से बचाया
फिर इस्त्री मर्यादा खातिर
धर्म युद्ध रचाया
अर्जुन हुए जो भयभीत
उसको गीता ज्ञान सुनाया
तब जाके उसको अपना
यथारूप भी दिखाया
उसके हाथो सब पापियों
का नाश भी करवाया
देके श्राप अश्वत्थामा को
फिर अमर भी बनाया
अपना नाम देके बर्बरीक
को खाटू श्याम बनाया

बीचों बीच समंदर में
इक नगरी बसाई
बड़े प्यार से बनाई
और द्वारका कहलाई
किया कोरवो का नाश
मिला गांधारी से श्राप
उनके श्राप से ही नगरी
जाके सागर में समाई
अपनी आंखो से ही
होते देखे वंश अपने का नाश
पर चेहरे से न कृष्ण लगे
थोड़े से उदास
जाके जंगल में बैठे
सोने लगे वृक्ष के नीचे
दिखे हिरण की भांति
खड़ा शिकारी दूर पीछे
उन्हें कर्म करना आता था
और धर्म को अपनाया
और खुद का अंत बाली रूपी
जरा से करवाया
भील से कराया
शिकारी से कराया
खुद का अंत बाली रूपी
भील से कराया

बाली को त्रेता युग में श्री राम ने छुपकर तीर मारा था 
तो द्वापर युग में उसी बाली का जनम एक शिकारी के रूप में हुआ
जो कर्म किये है उनका फल भुगतना पड़ता है चाहे इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में ही सही
वो दूसरों को धर्म का ज्ञान देते थे तो खुद के लिए कैसे नया नियम बनाते ।
दुःख झेले पीड़ा झेली फिर भी अपने कर्म किये ।
ऐसे ही नहीं वो कृष्णा कहलाते ।
ऐसे ही नहीं वो कृष्णा कहलाते ।

-: राधे राधे :-

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