चक्रधारी लिरिक्स (विनय कटोच)

चक्रधारी लिरिक्स

(विनय कटोच)

चक्रधारी लिरिक्स (विनय कटोच)
चक्रधारी लिरिक्स (विनय कटोच)

Music Composer/Producer: Vinay Katoch
Singers: Vinay katoch, Siddharth (Rap)
Lyrics: Vinay Katoch , Siddharth
Ending Voice over :Santosh Kshatriye
Harmonies -Vinay katoch

चक्रधारी लिरिक्स

(विनय कटोच)


हरे कृष्णा हरे कृष्णा
हरे राम हरे राम

मुरलीधर आओ
आओ विपदा घिर आयी
मुरलीधर आओ
आओ विपदा घिर आयी
द्रोपदी रोवे लाज बचाओ
आओ आओ गिरधारी
संकट हर लो ना
साहस भर दो ना
जपता हूँ बस नाम तेरा

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥

हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे

हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे

ध्यान तेरा व्याख्यान तेरा
करे दास तेरा ये पुकारे कहीं से
नाम तेरा गुणगान तेरा
तेरे कानों में पड़ जाये कहीं से
बांस तेरा और धाम तेरा
मुरली की धुन बज जाये कन्हैया
श्वांस तेरा हो साथ तेरा
बस ये जीवन तर जाये कहीं से
मैं सुना के संसार गाथा
घनश्याम भेंट कर दूँ
गुणों से है परे जो पीड़ा बता के
जब सुजल नेत्र कर दूँ
मैं जब चूर बैठा पीड़ा बताऊ
तेरे अलावा किस शरण जाऊ
मन में ये एक बस बात लाके
दुःख तेरे नाम कर दूँ
मधुसुदना, वध पूतना का
जैसे किया था तुमने
तुम बने थे सारथी
मुझ पर्थ के
जीवन साधा तुमने
वैसे ही...
करुणा का एक धनुष बना
और कृपा बाण से युक्त सदा
वर्षा बाण की कर दो जैसे
वो युद्ध करे तुमने
अब मैं कर्तव्यों से विमुख पड़ा
गांडीव हाथ से छूट रहा
शरीर कांपता दृश्य देख
मेरे देह का है हर रोम खड़ा
हे केशव मेरी बुद्धि भ्रम में
रह ना सकूँ अभी और खड़ा
गुरु तुम्हें है माना
अब हे श्याम आओ
तेरी शरण पड़ा

हां................

मुरलीधर आओ
आओ विपदा घिर आयी
मुरलीधर आओ
आओ विपदा घिर आयी
अर्जुन बोले राह दिखाओ
आओ आओ गिरधारी
संकट हर लो ना
साहस भर दो ना
जपता हु बस नाम तेरा

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥

हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे

हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

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