दुख 2 (एक सच्ची गाथा) लिरिक्स (घोर सनातनी)

दुख 2 (एक सच्ची गाथा)

लिरिक्स (घोर सनातनी)


दुख 2 (एक सच्ची गाथा) लिरिक्स (घोर सनातनी)
दुख 2 (एक सच्ची गाथा) लिरिक्स (घोर सनातनी)

Lyrics/Rapper/Music/Mix/Master
‪@GHORSANATANI‬

दुख 2 (एक सच्ची गाथा)

लिरिक्स (घोर सनातनी)


पिछली बार मैंने आपको
कृष्णा जी के जीवन में आए
कुछ कष्टों से अवगत कराया था
किन्तु आज आपको
प्रभु श्री राम जी के जीवन में आए
कुछ कष्टों के बारे में बताता हूँ

॥ जय श्री राम ॥

श्राप बूंदा से मिला जो
विष्णु उसे रहे भोग
उनके श्राप से ही रामसीता
हुआ था वियोग
राधा कान्हा के भी प्रेम में भी
आई कई बाधा
उन्हें मिले कष्ट पीड़ा
उनका प्रेम रह गया आधा
भूलवश दशरथ जी ने किया
श्रवण हत्या पाप
पुत्र वियोग की पीड़ा का
उन्हें मिला था श्राप
तीनों रानियां थी रूपवती
राजा थे धनवान
किन्तु गोद सबकी सूनी
उन्हें कोई ना संतान
यज्ञ किया पिता जी ने
हुए चार पुत्र प्राप्त
उनकी वर्षों की तपस्या मानो
हो चली समाप्त
चारों भाइयों में था प्रेम
हुआ राज्यभिषेक तय
माता कैकई को भरत खातिर
लगने लगा भय
आई वियोग की जो घड़ी
पिता हो गये उदास
मैंने पिता जी का मान रखा
तोड़ा ना विश्वास
माता कैकई के पैर छुए
जाके उनके पास
बिना एक शब्द कहे
करने चला मैं वनवास
मैंने लाख रोका किन्तु सीता
साथ मेरे चले
लक्ष्मण कर बैठे जिद
ना वो हटे ना ही टले
पिता रोने लगे मुझको
लगाके अपने गले
पीछे पीछे आयी प्रजा
वो थे लोग बड़े भले
केवट पाँव धोने लगा
उसका साफ़ बड़ा मन
नदी पार था लगाया
बिना लिए कोई धन
भरत आया मुझे मिलने
दिल हुआ था प्रसन्न
मेरे आसूं निकल आए
देख उसका भोलापन
बोला जाता न ननिहाल
मुझे होता अगर आभास
बोला राज करना आप
सेवा करेगा ये दास
हट करके मानो बैठ गया
पैरों के वो पास
मुझे रोकने की खातिर
उसने किए बहुत प्रयास
माना न मैं लौट गया
पादुका को लेकर
किन्तु जाते जाते गया
एक वचन को वो लेकर
राज करेगी ये पादुका
ये अयोध्या का मान
14 वर्षों से जो देरी होगी
त्यागूँगा मैं प्राण
मेरे पिता चल बसे
उन्हें देख न मैं पाया
माना दुःख की थी घड़ी
किन्तु श्राप की थी माया
शूर्पणखा ने लंका जा के
जब रावण को उकसाया
भेष बदल के आया रावण
स्वर्ण हिरन संग लाया
पंचवटी से मेरी सीता को
जी बंदी था बनाया
प्राण दांव पे लगा
जटायु लड़ने उससे आया
मरते मरते वीर जटायु ने
जब किस्सा था सुनाया
उसके पंख कटे देख
मेरा आँसू निकल आया
मुझे क्षमा करना प्रभु
कहके पक्षीराज रोने लगा
गोद में ही प्राण त्याग
अब वीर जटायु सोने लगा
घने वन में भटक रहे हम
बनके अनजान
तभी मिलने आया मुझसे
मेरा प्रिय हनुमान
सुग्रीव से सहायता खातिर
बाली को था मारा फिर
द्वापर युग में कृष्ण बनके
कर्ज ये उतारा
मैंने त्रेता में जो मारा था
छुपके बाली को तीर
मेरा अंगूठा द्वापर में
भील बाली गया चीर
मेरी सीता मुझे लंका से
अब रही थी पुकार
किन्तु सागर इतना गहरा चौड़ा
कैसे होगा पार
लिया मानव का एक रूप
सबका करने को उद्धार
यूं तो चाहता मैं अगर पल में
सागर कर जाता पार
चाहे कितनी भी थी शक्ति
बेशक विष्णु का अवतार
किन्तु किए नित्य कर्म
मुझे कष्ट भी स्वीकार
अपने हाथों से उठाए पत्थर
गवाह ये संसार
अब जा के उस पार
करना रावण का संहार
सबकी मेहनत लगी तभी सेतु
हुआ था तैयार
एक नन्ही सी गिलहरी
मुझसे करती बहुत प्यार
मैंने अहिल्या को तारा
शबरी के बैर खाए
रावण त्यागे जो विभीषण
हमने गले से लगाए
हुए लक्षमण जब मूर्छित
मेरी निकाल रही जान
बूटी लाए न हनुमान
शायद मैं भी त्यागू प्राण
आते देख के हनुमान
मैंने गले से लगाया
मेरे भरत जैसे भाई हो तुम
कह के गले लगाया
किया रावण का जी अंत
लंका पाप मुक्त कराई
सबसे पहले जाके सीता मैंने
कैद से छुडवाई
सिया रो रो के मुझे सारी
व्यथा लगी कहने
दोनों प्रेम करते सच्चा
देखो आँखे लगी बहने
सबसे पहले भेजा हनुमत को
तुम भरत को समझाओ
वो कल प्राण त्याग देगा
जाके उसको बचाओ
मैंने वैष्णो माता को दिया
वचन है अधूरा
अब कलयुग में आएंगे कल्कि
करने वचन पूरा
सारे जीवन मैंने मानवता को
धर्म की दी शिक्षा
कैसे सोच लिया तुमने हुई
अग्नि की परीक्षा
तुमको धर्म से भटकाने का ये
पापियों का काम
चक्र मुरली दोनों साथ रखे
बन के मैंने श्याम
सीता अग्नि की परीक्षा का है
झूठा एक इल्जाम
भला सीता से कभी अलग
हुआ उसका राम
सीता अग्नि की परीक्षा का है
झूठा एक इल्जाम
भला सीता से कभी अलग
हुआ उसका राम
सीता अग्नि की परीक्षा का है
झूठा एक इल्जाम
भला सीता से कभी अलग
हुआ उसका राम

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