वही कर्ण हूँ मैं लिरिक्स (रावण)

वही कर्ण हूँ मैं लिरिक्स (रावण)

वही कर्ण हूँ मैं लिरिक्स (रावण)
वही कर्ण हूँ मैं लिरिक्स (रावण)

Song Name : Wahi Karn Hu Mai
Singer : Ravan
Lyrics/Compose : Ravan
Music/Mix and Mastered : Rohit Chaudhary
Label - @Red Sky Records

वही कर्ण हूँ मैं लिरिक्स (रावण)

था दिव्य पुरुष
था दिव्य अंश
था काल भी मुझसे डरता
कर दूँ परास्त देवों को भी
इतना भुजाओं में बल था
था तेज अलौकिक चेहरे पर
था क्रोध में सूर्य सा जलता
था वीर महाभट्ठ योद्धा
मेरा नाम दानवीर कर्ण था

जो महारथी है, पराक्रमी है
कर्मवीर वो कर्ण हूँ मैं
जो कुरुक्षेत्र की मिट्टी
के कण-कण में है
वो कर्ण हूँ मैं
जो सूर्य देव की
स्वर्णिम किरणें धरती पे
वो कर्ण हूँ मैं
जो प्राण भी दे दे दान में
ऐसा दानवीर
वो कर्ण हूँ मैं

जो महारथी है, पराक्रमी है
कर्मवीर वो कर्ण हूँ मैं
जो कुरुक्षेत्र की मिट्टी
के कण-कण में है
वो कर्ण हूँ मैं
जो सूर्य देव की
स्वर्णिम किरणें धरती पे
वो कर्ण हूँ मैं
जो प्राण भी दे दे दान में
ऐसा दानवीर
वो कर्ण हूँ मैं

जब जन्म हुआ
माँ ने त्यागा मुझे
लोक लाज के डर से
जिस वक्त मैं माँ पर निर्भर था
उठा माँ का साया भी सिर से
जो सोच कर हो पीड़ा मन में
कुंती ने ऐसा काम किया
गंगा में बहाया था मुझको
दिल से निकाला और घर से
एक सारथी ने मुझको पाला
राधा ने माँ का प्यार दिया
लोगों ने नीचे वर्ण का कह
हर क्षण मेरा अपमान किया
एक सूत ने पाला था मुझको
सबने समझा मैं शुद्र हूँ
था सत्य का किसी को ज्ञान नहीं
मैं कर्ण, सूर्य का पुत्र हूँ
अपमान का घूंट मैं पीता रहा
था कर्मवीर, मैं जीता रहा
जो स्वाभिमान को जख्म लगे
उस वक्त मैं उनको सिता रहा
मेरा जिस पर बस ध्यान था
वो युद्धकला का ज्ञान था
पर सीखूं किससे युद्धकला
था मैं न किसी को जानता
रूचि को देखा अधिरथ ने
मुझको द्रोण के पास में ले गया
सीखूंगा अब मैं युद्धकला
आश्वासन मुझको दे के गया
पर द्रोण ने भी धिक्कारा था
फिर मुझको ताना मारा था
है राजपुत्रों की युद्धकला
ये कह कर मुझे नकारा था
फिर युद्धकला के ज्ञान को मैंने
गुरु परशुराम से माँगा
शिक्षा को देकर छीन लिया
इतना मैं रहा अभागा
पूर्ण हुई शिक्षा सबकी
था रंग मंच भी लगा हुआ
वहाँ राजपुत्रों के स्वागत में
सारा साम्राज्य था सजा हुआ
खुशियाँ थी चारों तरफ वहाँ
पर बजते ढोल-नगाड़े थे
सभी राजपुत्र वहाँ रंगमंच पे
रणकौशल दिखला रहे थे
संग विजय धनुष को लिए हुए
फिर मैं भी वहाँ पर पहुँच गया
जो देखा मेरा रणकौशल
सारा साम्राज्य भी चकित हुआ
द्रोण ने वहाँ सर्वश्रेष्ठ कह
कर जिसे पुकारा था
मैंने भी फिर सबके समक्ष
उस अर्जुन को ललकारा था
फिर किया तिरस्कृत द्रोण ने
मुझको जाने क्या-क्या बात कही
पहचान लिया था पुत्र को
लेकिन कुंती फिर भी मौन रही
फिर दुर्योधन ने भरी सभा में
द्रोणाचार्य को रोक दिया
मुझको कह करके अंगराज
फिर अंगदेश मुझे सौंप दिया
ये बात सुनी जब मैंने,
तब मैं गौरव से हर्षाया था
मुझे दुर्योधन ने मित्र कहा
और सीने से भी लगाया था
जब कोई नहीं था संग मेरे,
दुर्योधन साथ में खड़ा हुआ
मैं दानवीर, फिर उसी समय से
दुर्योधन का ऋणी हुआ
मैं दानवीर, फिर उसी समय से
दुर्योधन का ऋणी हुआ
मैं दानवीर, फिर उसी समय से
दुर्योधन का ऋणी हुआ

जो महारथी है, पराक्रमी है
कर्मवीर वो कर्ण हूँ मैं
जो कुरुक्षेत्र की मिट्टी
के कण-कण में है
वो कर्ण हूँ मैं
जो सूर्य देव की
स्वर्णिम किरणें धरती पे
वो कर्ण हूँ मैं
जो प्राण भी दे दे दान में
ऐसा दानवीर
वो कर्ण हूँ मैं

मुझे क्रोध भयंकर आता था,
पर क्रोध को मैंने बाँध लिया
बनना है मुझको सर्वश्रेष्ठ,
यह मन में मैंने ठान लिया
किया अपमानित मुझे बार-बार,
न किसी ने मेरा मान किया
एक दुर्योधन ही था,
जिसने हरदम मेरा सम्मान किया
कौन हुआ है वीर स्वयं जिसने
त्यागा अभिनंदन को ?
मिला राज्य, भोग,परिवार सभी,
पर त्याग दिया हर बंधन को
सब बता दिया था सूर्यदेव ने,
फिर भी मैंने दान दिया
था पता इंद्र की चाल है
फिर भी त्यागा कवच और कुण्डल को
मित्र को वचन दिया था मैंने,
वचन की लाज बचाने को
मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था,
बस अर्जुन से टकराने को
मेरे उन तीरों ने कब का,
अर्जुन को मार दिया होता
पर स्वयं कृष्ण बैठे थे रथ पर,
कर्ण से उसे बचाने को
रथ 30 हाथ पीछे हटता जब,
अर्जुन तीर चलाते थे
2 हाथ पछाड़ा मैंने,
केशव मंद-मंद मुस्काते थे
श्रीकृष्ण की वाह-वाह को सुनकर
अर्जुन कुछ शंका करते थे
मेरे उस रणकौशल की क्यों
श्रीकृष्ण प्रशंसा करते थे
पूछ लिया अर्जुन ने केशव से,
"के कारण क्या है ?
मैं कर्ण पर पड़ता हूँ भारी,
फिर उसकी क्यों वाह-वाह है ?
कान्हा ने अर्जुन के मन की
शंका को फिर यूँ दूर किया,
था अहंकार जो अर्जुन को,
केशव ने उसको चूर किया
तीनों लोकों के स्वामी ने रथ
पर लगाम को पकड़ा है
ध्वज में हनुमान जी बैठे है
अयि ने पहियों को जकड़ा है
हे अर्जुन, तुम ही बतलाओ
इसमें क्या प्रश्न है शंका का ?
रथ एक हाथ भी पीछे हो,
तो कर्ण है पात्र प्रशंसा का
युद्ध भयंकर चालू था,
फिर मेरा मन यूँ डोल गया
गुरु परशुराम का श्राप मुझे,
मैं अपनी विद्या भूल गया
बस उसी समय पर रथ के
पहिये को धरती ने जकड़ लिया
धरती के श्राप का फल था वो,
तभी काल ने मुझे जकड़ लिया
शस्त्रहीन होकर के,
जब मैं अपने रथ से उतरा था,
अर्जुन ने अपने तीरों से,
फिर मुझपे घातक वार किया
ध्यान था मेरा पहिये पर,
न पास में मेरे धनुष-बाण
तब केशव के आदेश पर
अर्जुन ने फिर मुझको मार दिया
जब अर्जुन ने मारा मुझको,
न अर्जुन ने बल से मारा
भगवान साथ थे अर्जुन के,
फिर भी मुझको छल से मारा
वहाँ बिना दिव्यास्त्रों के भी
न कर्ण कभी हारा होता,
गर अर्जुन ने उस युद्ध में
मुझको छल से न मारा होता
ना मुझ सा त्यागी हुआ कोई
न हुआ हुआ मुझ सा योद्धा कोई
दान में मुझसे प्राण भी लो
यूँ दानवीर ना हुआ कोई
मित्र अधर्मी था मेरा,
पर मित्र पे सब कुछ हार गया
जिस मित्र ने साथ दिया मेरा,
उस मित्र पे जान को वार गया
हुई थी मेरी मृत्यु जब,
सारा संसार ही मौन हुआ
हुए बहुत से योद्धा,
पर मुझ कर्ण के जैसा कौन हुआ ?
हुए बहुत से योद्धा,
पर मुझ कर्ण के जैसा कौन हुआ ?
हुए बहुत से योद्धा,
पर मुझ कर्ण के जैसा कौन हुआ ?

जो महारथी है, पराक्रमी है
कर्मवीर वो कर्ण हूँ मैं
जो कुरुक्षेत्र की मिट्टी
के कण-कण में है
वो कर्ण हूँ मैं
जो सूर्य देव की
स्वर्णिम किरणें धरती पे
वो कर्ण हूँ मैं
जो प्राण भी दे दे दान में
ऐसा दानवीर
वो कर्ण हूँ मैं

जो महारथी है, पराक्रमी है
कर्मवीर वो कर्ण हूँ मैं
जो कुरुक्षेत्र की मिट्टी
के कण-कण में है
वो कर्ण हूँ मैं
जो सूर्य देव की
स्वर्णिम किरणें धरती पे
वो कर्ण हूँ मैं
जो प्राण भी दे दे दान में
ऐसा दानवीर
वो कर्ण हूँ मैं

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