गंगा पुत्र भीष्म लिरिक्स
(श्लोविज)
गंगा पुत्र भीष्म लिरिक्स (श्लोविज) |
Written, Composed & Performed By- Shlovij
Produced & Mixed/Mastered By- X Zeus
गंगा पुत्र भीष्म लिरिक्स
(श्लोविज)
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म हूं,
जिसने ली थी भीष्म शपथ।।
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म,
जिसका ना रुका युद्ध में रथ।।
पिता शांतनु मां गंगा
संतान उनकी में आठवीं
युवावस्था से भी पहले
दिया राज सिंहासन त्याग भी
आजीवन ब्रह्मचर्य रहूंगा
भीष्म प्रतिज्ञा ली मैंने
कारणवश इसी मिला मुझे
यह भीष्म नाम का ताज भी।
वचन से अपने बंधा रहा
कुलवधू का भी अपमान सहा,
चीर हरण पर चुप्पी साधे
मैं नीर बहा अनजान रहा,
सहा मैंने इस वचन की खातिर
दारुण दुख, ना तोड़ा वचन
खंड-खंड कर देता जो वो
रहा दास बनकर, न छोड़ा कथन।
रण में भी मेरे समक्ष
मेरे प्रिय पुत्र पांडव थे
कौरवों का सेनापति
मैं सब देख रहे तांडव थे
लड़ रहा था बेशक मैं युद्ध
पर तृप्त था मैं ग्लानि से
बिंधा हुआ मैं वचन, श्राप
और स्वयं की ही वाणी से।।
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म हूं,
जिसने ली थी भीष्म शपथ।।
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म,
जिसका ना रुका युद्ध में रथ।।
काट दिए कितने ही शीश
कितने ही योद्धा मैंने मारे थे,
और वीरों से भी वीर धनुर्धर
आगे मेरे बेचारे थे,
कुरुक्षेत्र की भूमि मैंने
कर दी थी लाल, संघार किया
वह भीष्म ही था जिसने
पांडव में जमकर हाहाकार किया।
क्रूर बन में और मुझे
दुर्योधन ने ललकारा जब
युद्ध भूमि में रक्तपात कर
क्रोध में सबको मारा तब
हाय नियति भी विरुद्ध
मेरे हाथ वचन की डोर में
तब सोचा कृष्ण के हाथों
मर के चलूं मोक्ष की ओर मैं।
विवश किया श्री कृष्ण जी को
मैंने शस्त्र उठाने की खातिर,
और बल से अपने अर्जुन को
मैंने सोचने पर मजबूर किया,
अर्जुन ने जब किया निवेदन
श्री कृष्ण के कहने पर तब,
हार कैसे हो युद्ध में मेरी
बता यह संशय दूर किया।
खड़ा सामने प्रिय पुत्र
अर्जुन और बाण चलाए जो,
युद्धनीति में फंसा भीष्म,
आंखों में नीर बसाए वो,
तीर पे तीर पे तीर पे तीर पे
तीर चढ़े प्रत्यंचा पर,
किंचित सामने खड़ा भीष्म,
भला कैसे रोक ही पाए वो।।
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म हूं,
जिसने ली थी भीष्म शपथ।।
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म,
जिसका ना रुका युद्ध में रथ।।
जीवन मेरा पीड़ामय
किस्मत भी श्राप की दासी थी,
कुरुक्षेत्र की भूमि अब
मेरे रक्त की मानो प्यासी थी,
खड़ा किया मेरा कर्म सामने
प्रतिबिंब फिर दिखलाया,
अर्जुन पर था ताना तीर
पर ढ़ाल शिखंडी को पाया।
मोड़ दिया सहसा ही तीर
स्त्री पर बाण चलाया नहीं,
बैठ रथ पर अर्जुन के
कृष्ण ने चली एक और माया नई,
बींध दिया अर्जुन ने तीरों से
बाण शैय्या पर लेटाया
इच्छा मृत्यु वरदान जिसको था
प्राप्त वो भी ना हिल पाया।।
रण में भी मेरे समक्ष
मेरे प्रिय पुत्र पांडव थे
कौरवों का सेनापति मैं
सब देख रहे तांडव थे
लड़ रहा था बेशक मैं युद्ध
पर तृप्त था मैं ग्लानि से
बिंधा हुआ मैं वचन, श्राप
और स्वयं की ही वाणी से।।
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म हूं,
जिसने ली थी भीष्म शपथ।।
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं हूं गंगा पुत्र,
गंगा पुत्र देवव्रत
मैं ही भीष्म,
जिसका ना रुका युद्ध में रथ।।
टिप्पणियाँ