वस्त्रहरण लिरिक्स (राँझा)
वस्त्रहरण लिरिक्स (राँझा) |
Song:- Vastraharan
Lyrics & Composition:- Raanjha
Rap:- Raanjha
Vocals:- Mahabharat (New)
Music:- Smokey
वस्त्रहरण लिरिक्स (राँझा)
वार्ता :-
यदि वो घमण्डी स्त्री
मेरे आदेश को स्वीकार न करें
तो उसे बालों से पकड़कर
खींच कर यहाँ ले आना
महाराज...
हस्तिनापुर की राजसभा में
यह किस प्रकार का व्यवहार हो रहा है
मैं कुरु वंश की कुल वधू हूँ
कुरु राष्ट्र की प्रतिष्ठा हूँ
और मुझे इस प्रकार यहाँ
वन पशु की भांति लाया जा रहा है
क्यों........?
मैं सारी सभा से प्रश्न करती हूँ
यह किस प्रकार का धर्म है ?
क्या धर्म ही स्त्री का अपमान करता है ?
धर्म ही स्त्री का शोषण करने का
अधिकार देता है आप पुरुषों को ?
Rap :-
वो द्यूत नहीं प्रपंच था ऐसा
एक एक कर दाव हुए
जो किसी ने न था सोचा वो
इतिहास की छाती पे घाव हुए
हां सभा वो धर्म की सारी थी
जहां लगी दाव पे नारी थी
घसीट के लाया दुशासन
वह असहाय बेचारी थी
वो कर्हाती चिल्लाती गई
द्रौपदी गुहार लगाती रही
पर बन गए सब पाशाण हृदय
किसी को न चीख सुनाई दी
केशों से खींचा, सिर को पटका
आमंत्रित किया विनाश कुल का
दुर्दशा हुई एक नारी की
कोई पशु भी न ऐसा कृत्य करता
हे भीम उठाो गदा तुम अपनी
ना झुकाओ इन आखों को
जिस दुशाशन ने छुआ मुझे
उखाड़ दो उसके हाथों को
हे अर्जुन क्या तुम भूल गए
वो प्राण जो लिया मेरे रक्षण का
लो हाथ में तुम गांधीव
और काटो मस्तक अब दुर्योधन का
हे आर्य करो रक्षा मेरी
ये शब्द गूंजे दरबार में थे
किसी ने भी न रोका पाप
द्रौपदी के आँसू निकलते रहे
हां धर्म को शस्त्र बनाकर के
मर्यादाएं भंग होती गईं
कुकर्म हुआ ऐसा कि कालिख
भारतवर्ष पर पोती गई
वार्ता :-
आओ दासी द्रौपदी
मेरी जंघा पर बैठो
पितामह...
अपने समग्र ऐसा व्यवहार देखकर आप
मौन किस प्रकार रह सकते है ?
मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों हो रहा है ?
प्रलाप मत करो ।
दुशासन ! जिस प्रकार इसने
इन्द्रप्रस्थ की सभा में
निशस्त्र किया था
उसी प्रकार इसे
इस सभा में निर्वस्त्र कर दो ।
दुर्योधन....... मर्यादा में रहो ।
मौन रहो !
जो पांच पांच पुरुषों के साथ
सम्बन्ध रखती है वेश्या होती है ।
ऐसी स्त्रियाँ और व्यभिचारणियों के
अंग पर वस्त्र हो या ना हो कोई भेद नहीं ।
दुशासन जाओ उतार दो -
इस दासी द्रौपदी के वस्त्र...
Rap : -
जिस धरा पे पूजा जाता है
देवों से पहले देवी को
वहां हुई कलंकित कीर्ति वो
इतिहास ने ना कभी देखी हो
रिश्तों के धागे तार तार
हुआ शर्मसार ये संसार
एक नारी के वस्त्र उतरते
देखता रह गया उसी का परिवार
हां आंख झुकाकर सब सहते रहे
जो वीर स्वयं को कहते थे
हां द्रोण, पितामह, अर्जुन, कर्ण
नपुंसक बन सब बैठे थे
अब कन्हा तुम ही लाज रखो
इस सखी की रक्षा आज करो
द्रौपदी की आन तुम्हारी हुई
गोविंद मेरा अब मान रखो
गोविंद !!!!
मायापति की माया के आगे
छल का साया, काम न आया
खींचे दुशाशन पंचाली के वस्त्र
का न अंत पाया
द्रौपदी के वस्त्र तन पे रहे
जो ले ली उसने कृष्ण शरण
पर पुरुष वो सभी निरवस्त्र हुए
जो देख रहे थे वस्त्रहरण
वार्ता :-
मुर्ख दुर्योधन...
मैं यज्ञ से जन्मी याज्ञसेनी हूँ
और अग्नि को कभी
बांधा नहीं जा सकता
मैं मनुष्य नहीं मृत्यु हूँ केवल मृत्यु
इस अधर्म सभा में उपस्थित
सबी दुष्ट मनुष्यों की मृत्यु हूँ मैं
Rap : -
बातों से अब न बच सकता
ये समय है तेरे मर्दन का
तेरी माता न बनती बांझ अगर
तु आज न ऐसा छल करता
एक नारी का सम्मान करना
अरे सिखा न पाखंडी तू
एक नारी से हुई उत्पत्ति तेरी
भूल गया घमंडी तू
जो कर्म किए तूने दुर्योधन
तेरे कुल के पतन का तू कारण
और आज के पाप के परिणाम का
तु ही बनेगा उद्धारण
इतिहास के पन्नों में शामिल होगी
दुर्दशा इतनी कतिल होगी
तु भिक्षा मांगेगा मृत्यु की
पर मृत्यु तुझे न हासिल होगी
न गिरे आज द्रौपदी के वस्त्र
पुरुषों की यहां शर्म गिरी
न आंख उठी न शस्त्र उठे
यहां हुई पराजय धर्म की
जिसे ढाल बना कुकर्म हुआ
वो कैसा निर्लज्ज धर्म भला
इतिहास मांगे उत्तर महावीरों
कैसे न आई तुम्हें शर्म जरा
वार्ता :-
आज इस सभा में समग्र विश्व की
सारी स्त्रियों के आँखों के आँसू
यहाँ बहाए हैं मैंने ।
इतना स्मरण रहे धर्म ज्ञानियों
दुर्योधन को उसके पापों का दंड
अवश्य मिलेगा किन्तु उससे पहले
इस सभा में उपस्थित सभी को
अपने मौन का दंड मिलेगा ।
यह श्राप है याज्ञसेनी द्रौपदी का ।
जाने से पहले मेरा यह प्रण सुन लो सभाजनों
मैं दुशासन की छाती को चीरकर
इसका लहू पिऊंगा
कुरु सम्राट धृतराष्ट्र के
सभी पुत्रों की मृत्यु
मेरे हाथों होगी
जिस प्रकार यह सभा
अंधकार में डूब गई है
उसी प्रकार सम्राट धृतराष्ट्र
आपके जीवन को भी
हम अंधकार से भर देंगे
हम अंधकार से भर देंगे
Rap :-
जो हुआ न अब तक अब होगा
न हुआ हो ऐसा रण होगा
और बातें होंगी शस्त्रों से
अब माफी नहीं मर्दन होगा
तुम रोक न पाओगे रक्तपात को
स्वयं बुलाया सर्वनाश को
बैठे यहां प्रत्येक मनुष्य की
बलि चढ़ेगी यमराज को
खत्म समग्र वंश होगा
सभी छल और कपट का अंत होगा
जो भूल पाएं त्रिदेव भी न
रणभूमि में ऐसा विध्वंस होगा
अब प्राणों का न दान मिलेगा
हर आंसू का हिसाब मिलेगा
बिखरे होंगे मस्तक इतने
वर्षों तक कोई गिन न सकेगा
छल का उत्तर वार से देंगे
रिश्तों का न मान रखेंगे
शपथ ये पाण्डु पुत्रों की
पंचाली का नहीं अपमान सहेंगे
शिव का भयानक तांडव होगा
अंत का अब ये आरंभ होगा
रण में रक्त ही रक्त होगा
भारत में महाभारत होगा
वार्ता :-
यह अंत का आरम्भ है
महाराज धृतराष्ट्र
इस सभा में
जिसने हमारे साथ
हुआ प्रपंच देखा
पांचाली के साथ
किया गया अपमान देखा
फिर भी मौन रहे !
उनका अंत होगा ।
रक्त की धाराएं बहेगी ।
कटे मस्तकों का अम्बार लगेगा ।
शिव का रूद्र तांडव होगा ।
महासंग्राम होगा ।
महाभारत होगा ॥
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