लक्ष्मण परशुराम लिरिक्स
(राँझा)
लक्ष्मण परशुराम लिरिक्स (राँझा) |
Song:- Lakshman Parshuram
Lyrics & Composition:- Raanjha
Rap:- Raanjha
Vocals:- Ramayan (Old)
Music:- Smokey
Mix & Master:- A Cube Music
लक्ष्मण परशुराम लिरिक्स
(राँझा)
रैप 1 (परशुराम):-
किसके तन से अलग होना चाहती आत्मा
कौन है जिसे ना मोह अब प्राणो का रहा
किसने किया भंग महादेव का धनुष
किसकी मृत्यु खीच मुझको लायी है यहाँ
किसकी मृत्यु खीच मुझको लायी है यहाँ
मेरे कोप से डरे पाताल लोक
भयभीत समग्र भूलोक
हा देवता भी न करते साहस
काँपता पुरा स्वर्गलोक
मुझे देख वीरो के हलक सुखते
क्रोध मेरा भली भाँति जानता
मृत्यु करती तांडव सिर पर
मारे मेरा ना पानी माँगते
जिसने तोड़ा धनुष ये शिव का
शत्रु अब वो परशुराम का
फरसे से ना बच पाएगा
आवाहन हे यमराज का
क्षत्रिय शत्रु है सम्पूर्ण सर्वनाश
साहस समापत सारा शास्त्रो का संवाद
सक्षम न सभी सहज न संभव
शिव शम्भु सारंग सन्धान
सब संग्रामि क्षत्रिय शिवद्रोही
सकल सेना का साथ संघार
संसार से स्मृति साफ सजदु
समाधि सभी का समाधान
रैप 2 (लक्ष्मण) :-
मर्यादा से हाथ बंधे मेरे
ऋषियो पे वार मैं करता नहीं
मेरे सामने हो कोई अभिमानी
अभिमान मैं उसका सहता नहीं
एक साधारण से धनुष की खातिर
इतना ना प्रलाप करो
मैं क्रोध में करदूं न पाप कोई
इस ऊँचे स्वर को शांत करो
हा धनुष तोड़े कई बाल्यकाल में
क्षमता एसी अनंतकाल में
किसी ने भी ना देखी हो हा
हम भी भक्त हैं महाकाल के
कायर वे जो डरते आपसे
रघुवंशी न झुकना जानते
जीते भी हम शान से पूरे
और आन की खातिर प्राण वार दे
क्षत्रिय रक्त इन रगों में दौड़े
प्राण जाए पर रण नहीं छोड़े
सामने खड़ा फिर काल हो चाहे
जो ललकारा फिर पग नहीं मोड
क्रोध का ना हमें भय दिखाईये
ऐसा भय नहीं जिसमें हमें भय दिखाई दे
इच्छा पूरी करते उसकी
जो भी कहे हमें युद्ध चाहिए
रैप 3 (परशुराम) :-
ओ राजा के छोकरे
तेरे सिर पर नाचे मौत रे
तेरी माता बनेगी निसंतान
फ़िर व्यर्थ की हट तू छोड़ रे
तू बोले नहीं तेरी मृत्यु बोले
क्रोध से मेरे त्रिलोक ये डोले
देव असुर सब कांपे अब तुझे
बचा न पाये शिव शंकर भोले
परशुराम को जाने ना
हा कैसा मुर्ख तू वीर भला
कि तुझमें साहस हो गया इतना
जो मुझको यहाँ ललकार रहा
क्या जीवन से तेरा मोह ना बाकी
ये परशु अब तेरे रक्त की प्यासी
सभा से पूछ ले परिचय मेरा
मैं क्षत्रिय कुलनाशक वनवासी
हां कितने ही लड़कर मरकर जल गए
कितनो के घर वर सकल उजड़ गए
गिरकर चरणो में भिक्षुक बन गए
परशु देख कर अदर से स्वर गए
कितनो के धड़ पर सर कट गिर गए
मस्तक कटे सब गिनाकर थक गए
जो योद्धा साहस कर गए रण का
रक्त से उनके सरोवर भर गये
रैप 4 (लक्ष्मण) :-
मेरे फन पर घूमे ये धरती सारी
कितने ही मारे मैंने अत्याचारी
क्रोध की सीमा मैं पार जो करदु तो
डोल उठेगी ये धरती सारी
किस्से आपके चर्चित सुने वो जो
निर्दोश आपसे ग्रासित थे वो जो
आकारण ही प्राण गवाये
एक क्रोधी साधु से चिन्तित थे
कुल की कलंकित कीर्ति कर
कुठार से माँ का कत्ल किया
कैसे क्रोध के कारण काटे सर ना
किंचित कलेजा करूं किया
कभी काल कहे कभी क्रोधी खुद को
कल्याणी कहे में कष्ट
क्यू क्रोधी कहलवाते काहे को
कौशल की खुद कहे कथा
मेरे भैया का अपमान न सहता
चाहे चुनौति भगवान भी देता
मेरे जीते जी ना होने दूंगा
इनका मैं इक बाल भी बाँका
अब बात नहीं, अब वार करो
और कर सको मेरा संहार करो
गाथा तो आपने गा दी बहुत
अब शस्त्रो से प्रहार करो
बिप्रबंस कै असि प्रभुताई।
अभय होइ जो तुम्हहि डेराई ।
राम रमापति कर धनु लेहू।
खेंचहूं मिटै मोर संदेहू ।
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ।
परसुराम मन बिसमय भयऊ ।।
बिनय सील करुना गुन सागर।
जयति बचन रचना अति नागर ।
सेवक सुखद सुभग सब अंगा।
जय सरीर छबि कोटि अनंगा ॥
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