कुम्भ कथा (आस्था कि डुबकी)-NARCI

कुम्भ कथा 

(आस्था कि डुबकी)

कुम्भ कथा (आस्था कि डुबकी)
कुम्भ कथा (आस्था कि डुबकी)

Song: Kumbh Katha
Rap: Narci
Singer: Shailendra Bharti
Lyrics: Narci & Sant Kabir Das
Music, Mixing & Mastering: Xzeus
Label: Universal Music

कुम्भ कथा 

(आस्था कि डुबकी)

NARCI

मेरा मुझमें कुछ नहीं
जो कुछ है वो तेरा
मेरा मुझमें कुछ नहीं
जो कुछ है वो तेरा
तेरा तुझको सौंपते
क्या लागे है मेरा
क्या लागे है मेरा

कुछ भी ना मेरा प्रभु
तेरा तुझे अर्पण
तूने ही दिखाया मुझे
कर्मों का दर्पण
नाम लेके तेरा बीता
प्रभु मेरा हर क्षण
दिया तूने सब
बस अब मांगूं दर्शन
कुम्भ कि ये घडी आयी
कई सालों बाद
प्रयागराज थामे
जयकारों का नाद
हरिद्वार गूंज उठा
हरी हर बोलों से
नासिक उज्जैन
थामे आस्था कतार
कुम्भ पीछे कथा क्या
नहीं तुझे पता यदि
कथा ये बताने को
हरी का भी दास यहीं
चिंता न करो
संक्षेप में बताऊंगा
भक्तों के दिलों के
समीप है क्यूँ ये घडी ?
उस घटना को
गाने में है बाँध दिया
जब ऋषि दुर्वासा ने
था श्राप दिया
स्वर्ग लोक हाँ छोड़ के
विलास गया
तीनों लोकों में था
बलि ने ही राज किया
फिर क्या था
देवों में निराशा जागी
समाधान हेतु
आँखें हरि धाम भागी
हरि बोले-
जाके असुरों से बात करो
बचा यही आगे
देवों अब रास्ता ही
सुनो देवों करो ज़रा गौर
मंदार पे बनाओ तुम
वासुकी को डोर
उठेगा समन्दर में
मंथन का शोर
सुधा ही बनेगा
इस श्राप का ही तोड़
असुरों ने मान लिया
देवों का सुझाव
असुरों के दिल में था
लोभ गया जाग
हरि बने धरातल
कुर्म अवतार में
अमृत प्राप्ति की
लगी फिर आग
मथने को सागर
बढ़ा देखो वेग
रत्नों का आगमन
सारे रहे देख
हलाहल निकला जो
किसी ने भी पिया ना
पिने को पधारे
उसे स्वयं महादेव

माया मुई ना मन मुआ
मरी मरी गया शरीर
माया मुई ना मन मुआ
मरी मरी गया शरीर
आशा तृष्णा ना मुई
कह गए दास कबीर
रे भाई कह गए दास कबीर

जैसे ही निकला था
मंथन से कुम्भ
कुम्भ से सुधा को
पीने की धुन
देवों ने थामा था
अमृत कलश
असुरों के नैनों से
हुए थे गुम
हाथों में कुम्भ था
पैरों में वेग
असुर थे पीछे
और आगे थे देव
12 दिनों तक
ये चली थी दौड़
कहाँ दौड़ में बूंदे हाँ
गिरी थी देख
चार स्थानों पर थे
गिरी बूँदें कुम्भ से
बोलो क्या बताओगे ?
जो स्थान पूछूं तुमसे
चार इन स्थानों ने
बूँदें करी ग्रहण
हरिद्वार प्रयागराज
नासिक उज्जैन
गंगा यमुना गोदावरी
और शिप्रा
बनी थी पावन
जो शुधा था बिखरा
यदि कोई ग्लानी का
काँटा है चुभता
तो कर ले स्नान
और अंत होगा दुःख का
वृश्चिक राशि में सूर्य और चन्द्र हो
ब्रहस्पति मेष में
डाल देता चरण हो
मकर सक्रांति में
होता ये योग
छू के हाँ पानी को
तन माना धन्य हो
कुम्भ के मेले में
लेना स्नान
स्वर्ग के साक्षात
दर्शन समान
कहते है-
मिलता दासों को मोक्ष
कर ले हाँ प्राणी
तू हरी का ध्यान
ये जो कर्म है
यही तेरे साथ है
यही साथ होंगे
तुझे भी ये ज्ञात है
काया तेरी कल
खाक होगी घाट पे
भार लेके नहीं सोना
कोई खाट पे
वैसा पायेगा तू प्राणी
जैसा बोयेगा
बेड़ा पार होगा
हरि में जो खोएगा
तन धोया तूने
पावन सी नदियों में
लेके हरि नाम
पर दिल को भी धोएगा
करने है पाप
बाद करने के जाप
तो तुझको है देना
बस यही सुझाव
कुम्भ में उनके ही
धुलते है पाप
जो सच्चे ह्रदय से
चुने पश्चाताप

कबीर सुता क्या करे ?
जागी ना जपे मुरारी
कबीर सुता क्या करे ?
जागी ना जपे मुरारी
एक दिन तू भी सोवेगा
लम्बे पाँव पसारी
रे भाई लम्बे पाँव पसारी..

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