वीर अभिमन्यु हिंदी
लिरिक्स (सिद्धार्थ शर्मा)
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वीर अभिमन्यु हिंदी लिरिक्स (सिद्धार्थ शर्मा) |
Song : Veer Abhimanu
Rap : Siddharth
Lyrics : Susheel Pandey
Music : CHANKKYA
वीर अभिमन्यु हिंदी लिरिक्स
(सिद्धार्थ शर्मा)
जब कुरूक्षेत्र की समर भूमि में
सर शैया पर भीष्म हुए,
तब कुरु कलंक के नैनो में
क्रोध-अग्नि लगी और ग्रीष्म हुए।
गुरुदेव बनेंगे सेनापति
यह चल चली थी शकुनि ने,
जिसमें फंसकर सब झुझ रहे,
वो जाल बुनी थी शकुनी ने।
इस बार चली थी चाल अजब,
जिसमें ना कोई संधि हो,
गुरुवर द्वारे वो ज्येष्ठ पांडु
सुत समर भूमि में बंदी हो।
फिर पांडव सेना में गुरुवर ने
ऐसा तांडव नृत्य किया,
सब समर मूंड से पाट दिया,
कुछ ऐसा चित्र-विचित्र किया।
निज सेना की ये दशा देख
अर्जुन को क्रोध अपार हुआ,
बज उठी कृष्ण की पांचजन्य,
फिर गांडीव का टैंकार हुआ।
कौरव सेना के होश उड़े,
जब गुरुवर का रथ छूर हुआ,
जो सोचा था, वो विफ़ल हुआ,
सब सपना चकना-चूर हुआ।
फिर कहा द्रोण ने दुर्योधन,
"मैं उस पर ना पा सकता,"
“अर्जुन के रहते धर्मराज को
बंदी नहीं बना सकता।”
फिर कहा त्रिगानों ने मिलकर,
“हम प्राण पे प्राण लड़ाएंगे,
हम अर्जुन को ललकारेंगे
और दूर तलाक ले जायेंगे।”
हम जान रहे हैं, अर्जुन से
पा सकता कोई पार नहीं,
पर इससे बढ़कर मित्र तुम्हें
दे सकता हूं उपहार नहीं।
फिर क्या था, ऐसी नीति बानी,
जिसको सबने मंजूर किया,
उसने अर्जुन को ललकारा
और समर भूमि से दूर किया।
अर्जुन के जाते गुरुवर ने
फिर कुछ नवीन संग्रह की
जिसका भेदन हो सके नहीं
उस चक्रव्यूह की रचना की
पांडव सेना भयभीत हुई
ये देख शत्रुदल सुखी हुए
जो सदा शान्त-चित्त रहे थे
वही धर्मराज भी दुखी हुए
निज सान्या जैसे दुखी देख
फिर शेर-बबर को जगना था,
जो धनी धनुष के बनते थे,
उनको भी नाक रगड़ना था।
है उमर 18 बरस मगर,
ये बड़ा धनुष का धन्नु है,
सबने देखा, कोई और नहीं,
वही अर्जुन सुत अभिमन्यु है।
महारथी वो जन्म से
ऋषियों का वर पाया था
सभी योद्धाओ से परे
वीर अभिमनु कहाया था
महारथी वो जन्म से
ऋषियों का वर पाया था
सभी योद्धाओ से परे
वीर अभिमनु कहाया था
"मैं इसका भेदन कर दूंगा,
ये भेद गर्भ में सुना हुआ,"
“दादाजी चिंता दूर करो,”
ये सुन सहस सौ गुण हुआ।
फिर अभिमन्यु के पीछे ही
कुछ तेज चले, कुछ धीमे चले,
कुछ पैदल, घोड़े, रथ सवार
गदा गदाधर भीम चले।
अभिमन्यु को ना रोक सका,
वे द्वार तीसरे पार हुए,
पर आज जयद्रथ के आगे
चारों भाई लाचार हुए।
अभिमन्यु ने मुड़कर देखा,
कोई ना पीछे अपना था,
पर विचलित तनिक ना हुआ वीर ,
ऐसा ही उसका सपना था।
कोई एक भिड़ा, कोई दो-दो संग,
कोई ले झुंडों का झुंड भिड़ा,
लाशों से पटने लगी धारा,
जब मुंड-मुंड पे मुंड गिरा।
दुर्योधन, दुशासन, विकर्ण,
कृतवर्मा अश्वत्थामा को,
गुरु द्रोण, कर्ण को हरा दिया,
और मारा शकुनि मामा को।
वो कर्ण भिड़ा जो दुर्योधन के
विजय की आशा थी,
वो कर्ण भिड़ा जो दुर्योधन के
अंतर्मन की भाषा थी।
वो करना भिड़ा जो एक साथ सौ
बाण चलने वाला था,
वो कर्ण भिड़ा जो दुर्योधन को
विजय दिलाने वाला था।
सबने देखा, वो अंगराज
रथ सहित धरा पर पड़ा मिला,
कुछ चेत हुआ तो भाग गया,
वो दूर सभी को खड़ा मिला।
फिर दुर्योधन हो गया कुपित,
ले सबका नाम पुकारा है,
“सब इस साथ मिलकर मारो,”
ऐसा आदेश हमारा है।
महारथी वो जन्म से
ऋषियों का वर पाया था
सभी योद्धाओ से परे
वीर अभिमनु कहाया था
महारथी वो जन्म से
ऋषियों का वर पाया था
सभी योद्धाओ से परे
वीर अभिमनु कहाया था
फिर एक साथ भीड़ गए साथ,
सातों ने ऐसा काम किया,
रथ तोड़, सारथी को मारा,
घोड़ों का काम तमाम किया।
तलवार-तीर जब टूट गये,
तो रथ के चक्के उठा लिये,
उस रथ के टूटे चक्कों से
कितनों के छक्के छुड़ा दिये।
ये देख अधम दुशासन ने
फिर सर पे गदा प्रहार किया,
गिर गया धरा पे वीर तभी,
पीछे से उसने वार किया।
फिर बारी-बारी से सबने
उसके सीने पे वार किया,
सब नियम युद्ध को भूल गए
और ऐसा अत्याचार किया।
सब मायापति की लीला है,
मैं कृष्ण लिखूं, घनश्याम लिखूं,
कितनों को धूल चटाया है,
कितनों कुरुवों का नाम लिखूं।
शब्दों में सहज "सुशीलापन",
अब कविता को विश्राम लिखूँ,
मैं उस बालक अभिमन्यु को,
अब अंतिम बार प्रणाम लिखूं।
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