मन का अर्जुन लिरिक्स
(वायू)
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मन का अर्जुन लिरिक्स (वायू) |
Song :-Man Ka Arjun
Artist :- Vayu
Song :- Man Ka Arjun
Prod/Mix/Master :- Vayuu
मन का अर्जुन लिरिक्स (वायू)
अंग अंग काँप रहे हैं
मेरे हाथों में शस्त्र उठाने की शक्ति नहीं
मेरा गाण्डीव मेरे हाथों से
फिसला जा रहा है माधव
मुझे केवल भयानक विनाश
दिखाई दे रहा है
केवल भयानक विनाश....
युद्ध को देदो हे माधव विश्राम
अपनों के प्राण ले काँपेंगे हाथ
त्यागु गांडीव मैं ले लू वनवास
भयवाह खेल का क्या ही परिणाम ??
सुन्न हैं ह्रदय से भ्रमित हूँ आज
अपने ही वंश के हरु क्यू प्राण ??
जो नगर बसे अपने कुल के शवो पे
चाहिए ना हमें उस भूमि का ताज
उधर बाण लगा पितामाह को
और पीड़ा की चीख यहाँ मेरे ही होगी
उधर लहु बहा तात श्री का
संग पराजय भी मेरी बहेगी
गुरु द्रोण जिन्होंने हर ज्ञान दिया,
अपने शिष्यों में सर्वोच्चतम स्थान दिया
जिनसे सिखा प्रत्यंचा चढ़ाना,
तलवार कोई कैसे उन आगे उठेगी
कैसे बनने दू हे माधव रण भूमि को
अपने ही कुल का शमशान में
जिन हाथों ने छुए हैं चरण
वो हाथ क्यों चले हैं शीश को काटने
अपने ही भाइयों के लहू का प्यासा
कुलनासक ना बन सकता मैं
दृश्य भयवाह की कल्पना मात्र से
लगी है आत्मा काँपने
हो रहा लाखो चिता का आभास
सुनु विधवाओ का मरण विलाप
दिख रहा बुझा घरो का चिराग
कानों में आ रही माँओ की पुकार
लहू ही लहू है भूमि गुलाल
कटे हैं शीश जो लगी क़तार
भाई ही भाई को रहा उजाड़
युद्ध ये कर सकता माधव मैं ना
माधव मैं ना,
कर सकता पापी ये युद्ध
भले दुर्योधन ने किया
सद्देव ही साथ हमारे कपट
दंड बस उन्हें मिले जिसने
किया पांचाली का चीर हरण
लहू की वर्षा में क्यू ही
भीगेगा निष्पाप ये आर्यावर्त
बहा पाऊँ ना अपनो का रक्त,
कुल ढहा तो जाउंगा नरक
कैसे मैं अपने आचार्यों,
भाईयो, मित्रो को देखूंगा मृत
थाम दो युद्ध ये मांग के भिक्षा
जी लूंगा डरा है मन
त्यागु मैं 4 गाँव और
दे दूंगा कौरवो को इंद्रप्रस्थ
हे केशव मैं क्या ही करू,
मुझे कुछ तो बताओ
मोह छलावे से मुझे बचाओ
मरीचिका में ये धसे हैं नेत्र
गिरा जा रहा हूँ उठ भी ना पाऊ
गुरु मेरे मेरी बुद्धि हैं भ्रम में,
मार्गदर्शी मुझे मार्ग दिखाओ
शरण में आया तुम्हारी हे माधव
क्या सही गलत मेरा भेद मिटाओ
अपने ही कुल के मरण से
कैसे हो धर्म स्थापित,
शीत इन स्वरो में काफ़ी
अपने ही हाथों से अपने प्राण हर,
चिता में अग्नि ना दूं मैं कदा भी
राह दो स्वामी, क्या अनुचित
और उचित पड़ा हैं भ्रम में राही
ज्ञान की ज्योति जलाओ हे,
माधव, हे सारथी,
भगवन मेरे चक्रधारी
बुद्धिमान व्यक्तियों जैसे तर्क देते हो
किन्तु वास्तव में
मुर्खता पूर्ण बातें करते हो पार्थ
ये नपुंसकता तुम्हें शोभा नहीं देती
युद्ध करना तुम्हारा कर्तव्य है पार्थ
शस्त्र उठाओ
इस युद्ध में विध्वंश होगा
अवश्य होगा
किन्तु ये भी जान लो
की नई परम्पराओं का निर्माण भी होगा ।
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